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जिन्हें हम भूल गए

शांति मलिक: पहली भारतीय महिला फ़ुटबॉलर जिन्हें मिला था अर्जुन अवॉर्ड, आज हम इन्हें भूल गए !

शांति मलिक: पहली भारतीय महिला फ़ुटबॉलर जिन्हें मिला था अर्जुन अवॉर्ड, आज हम इन्हें भूल गए !
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Syed Hussain

Published: 16 Aug 2019 9:42 AM GMT
विरासत में जो हमें मिलता है उसकी क़द्र हम नहीं करते, और जल्द ही हम उन्हें भूल जाते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है शांति मलिक के साथ, शांति मलिक एक ऐसा नाम जो आज की पीढ़ी शायद नहीं जानती लेकिन इस महिला ने भारतीय फ़ुटबॉल के लिए जो किया था वह सभी के लिए प्रेरणादायक है। शांति मलिक पहली भारतीय महिला फ़ुटबॉलर हैं, जिन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा गया था। साल 1983 में जब शांति मलिक को अर्जुन पुरस्कार मिला था तब फ़ुटबॉल प्रेमियों और महिलाओं में इसे क्रांति की तरह समझा जाता था। शांति मलिक भारतीय महिला फ़ुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान शांति मलिक हुआ भी कुछ ऐसा ही, इसके बाद भारत में फ़ुटबॉल से लेकर हर एक खेल में महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और पुरुषों के कंधों से कंधा मिलाकर चलने का हौसला दिखाया।  शांति मलिक 1980 में कोज़िकोड एशियन फ़ुटबॉल एडिशन में टॉप स्कोरर रही थीं और शांति मलिक ने ठीक यही कारनामा 1983 के सीज़न में भी करते हुए सभी को हैरान कर दिया था। शांति मलिक के इन्हीं प्रदर्शन के आधार पर उन्हें 1983 में अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा गया था। शांति मलिक की उपलब्धियां कितनी ख़ास और बेहतरीन हैं वह शायद किसी रिकॉर्ड बुक से पता नहीं चल सकती लेकिन पुरुषों का खेल माने जाने वाले फ़ुटबॉल को महिलाओं के लिए आसान बनाने का श्रेय सिर्फ़ और सिर्फ़ शांति मलिक को ही जाता है। मलिक, भारतीय महिला फ़ुटबॉल टीम की कप्तान भी रह चुकी हैं। 2011 में शांति मलिक को फ़ुटबॉल में उनके योगदान के लिए सुब्रोतो मुखर्जी स्पोर्ट्स फ़ाउंडेशन की तरफ़ से भी सम्मानित किया गया था। शांति मलिक के योगदान को इस तरह से भाी समझा जा सकता है कि उनकी मेहनत ही थी कि तब भारतीय महिला फ़ुटबॉल टीम साल में कम से कम 10 अंतर्राष्ट्रीय मैच ज़रूर खेला करती थी। शांति मलिक
अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित होने वाली पहली महिला फ़ुटबॉलर हैं शांति मलिक 1982 एशियन गेम्स में शांति मलिक ने भारतीय महिला फ़ुटबॉल टीम की कप्तानी भी की थी, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फ़ुटबॉल में कई अवॉर्ड जीतने वाली शांति मलिक क्रिकेट, बास्केटबॉल और वॉलीबॉल भी बहुत अच्छा खेलती थीं। इतना ही नहीं 1978 में शांति मलिक राष्ट्रीय हैंडबॉल चैंपियन भी रहीं थीं। इतना कुछ होने के बाद भी शांति मलिक बेहद नाराज़ भी रहीं है, एक साक्षात्कार में उन्होंने साफ़ साफ़ सरकार से नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा था कि उन्हें जो इस्टर्न रेलवे में नौकरी मिली वह भी फ़ुटबॉल की वजह से नहीं बल्कि हॉकी की वजह से मिली थी। ''महिला फ़ुटबॉल की हालत कितनी दयनीय है इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि मुझे इस्टर्न रेलवे में नौकरी भी फ़ुटबॉल नहीं बल्कि हॉकी में मेरे योगदान की वजह से मिली थी। इस देश में महिला फ़ुटबॉल पर कोई भी सरकार एक रुपया नहीं ख़र्च करती, हमारे ज़माने उनके पास पैसे नहीं होते थे और आज वह अपने घर ले जाते हैं पर महिला फ़ुटबॉल पर कुछ नहीं करते। मैं सच ही बोलूंगी और महिला फ़ुटबॉल में हो रही नाइंसाफ़ी पर मुंह नहीं बंद करूंगी।'' - शांति मलिक, पूर्व कप्तान, भारतीय महिला फ़ुटबॉल टीम शांति मलिक की बातों में दर्द साफ़ झलकता है, लेकिन फिर भी वह आज सभी खिलाड़ियों, महिलाओं और हर एक किसी के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं हैं। द ब्रिज भी इस भुला दिए गए हीरो शांति मलिक के जज़्बे को दिल से सलाम करता है।
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