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कोच कॉर्नर

EXCLUSIVE: जसपाल राणा अर्जुन तैयार करते हैं, और मैं एकलव्य बनाता हूं - डॉ राजपाल सिंह

EXCLUSIVE: जसपाल राणा अर्जुन तैयार करते हैं, और मैं एकलव्य बनाता हूं - डॉ राजपाल सिंह
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Syed Hussain

Published: 30 Oct 2019 6:46 AM GMT

भारत को 40 से ज़्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय शूटर देने वाले, बिना सरकारी और किसी तरह की मदद के उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव जोहरी में राइफ़ल क्लब की स्थापना करते हुए सैकड़ों को सरकारी नौकरी में लगाने वाले, प्रकाशी तोमर और चंद्रो तोमर जैसी दादियों को शूटर बनाने वाले असीम प्रतिभा के धनी शूटिंग कोच डॉ राजपाल सिंह की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। पेशे से ख़ुद डॉक्टर रहे राजपाल सिंह ख़ुद भी कमाल के शूटर रहे थे, और उनके पुत्र विवेक कुमार को भी विरासत में ये कला मिली जिसने उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी नवाज़ा।

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अंतर्राष्ट्रीय शूटर सौरभ चौधरी और अमित श्योराण जैसे दिग्गजों को भी डॉ राजपाल ने ही तलाशा और तराशा है, आज राजपाल के शिष्य भारतीय आर्मी से लेकर भारतीय एयरफ़ोर्स और BSF तक में नौकरी कर रहे हैं। राजपाल सिंह ने जिस तरह से अपनी जोहरी राइफ़ल की स्थापना की थी वह उनके जज़्बे और शूटिंग में उनके समर्पण को दर्शाती है। डॉ राजपाल को उनके इस जज़्बे के लिए कई पुरस्कारों से भी नवाज़ा जा चुका है।

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राजपाल सिंह का मक़सद अकादमी खोलकर पैसे कमाना नहीं, बल्कि समाज और देश की सेवा करना था और वह अभी तक उसी रास्ते पर क़ायम हैं। द ब्रिज हिन्दी के कंटेंट हेड सैयद हुसैन के साथ EXCLUSIVE बातचीत में उन्होंने इसकी शुरुआत के पीछे की भी कहानी बताई और साथ ही साथ ये भी कहा कि उनके ऐसा करने से कई दिग्गज कोच नाराज़ हो गए, क्योंकि राजपाल एकलव्य बनाते हैं और इससे पैसा कमाने वालों की दुकानें बंद हो गईं।

सवाल: आपने कब और क्यों सोचा कि शूटिंग में युवा प्रतिभाओं के लिए कुछ करना चाहिए ?

डॉ राजपाल सिंह: ये तब की बात है जब मैं 1998 में छतरपुर मंदिर के पीछे रहता था, वहां एक बाबा रहते थे नागपाल। उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें जो विद्या आती है उसका सही इस्तेमाल कर। असल में मुझे ऊपर वाले की तरफ़ से एक ऐसी ताक़त हासिल है, जो शायद भारत में किसी और के पास नहीं। मैं आंख में देखकर निशाना लगा लेता हूं, भगवान का ये वरदान मुझे मिला हुआ था। इसी पर बाबा नागपाल ने मुझे कहा कि राजपाल तुम जिसे भी सिखाओगे उससे पैसे मत लेना, समाज और देश के भले के लिए सिखाना अगर पैसा लिया तो तुम्हारी विद्या चली जाएगी। तब से मैंने ये ठान लिया था कि इसे मैं बिज़नेस नहीं बनाऊंगा, आप जानकर हैरान रह जाएंगे मैंने राजीव गांधी को भी शूटिंग सिखाई थी। उन्होंने मेरे घर पुलिस भेजकर मुझे बुलाया था। मैंने उनको सिखाया फिर उन्होंने कहा कि तुम मेरे बेटे राहुल गांधी को भी सिखा दो। और राहुल गांधी को उन्होंने मेरे घर भेज दिया, लेकिन मैंने राहुल को वापस भेज दिया।

सवाल: जोहरी राइफ़ल क्लब की स्थापना आपने कैसे और किस मक़सद के साथ की थी ?

डा राजपाल सिंह: मैंने देखा कि सारे VIP के बच्चे मेरे पास आते हैं शूटिंग सीखने, तो मैंने ठान लिया कि मैं इन्हें नहीं बल्कि गांव और ग़रीब के बच्चों को सिखाउंगा। इसके बाद मैं 1998 में बाग़पत के जोहरी गांव की तरफ़ आया और वहां से बच्चों को तलाशने लगा। अकादमी खोलने के लिए मैंने किसी से कोई पैसे नहीं लिए, पठानों के मकान में एक मस्जिद में जगह मिली। फिर मेरे बेटे (विवेक कुमार) को अर्जुन अवार्ड का पैसा मिला था और साथ ही उसकी और अपनी एक महीने की सैलरी को मिलाकर मैंने घांस फूस से ही अकादमी की शुरुआत कर दी थी। और उसी अकादमी की देन हैं सौरभ चौधरी, अमित श्येरॉण, दोनों दादी (प्रकाशी और चंद्रो) और साथ ही साथ इस अकादमी से 40 से ज़्यादा बच्चों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है। मैं बच्चों को भारतीय आर्मी, भारतीय एयरफ़ोर्स , BSF जैसी जगहों पर भेजता हूं ताकि उनका करियर भी बने और देश को एक अच्छी प्रतिभाएं मिले।

गन्ने से युवा शूटर को निशानेबाज़ी का गुर सिखाते डॉ राजपाल

सवाल: एक तरफ़ शूटिंग को लेकर कई तरह की महंगी और बिज़नेस के लिए शूटिंग अकादमी चल रही है, और उसी बीच आप मुफ़्त में ग़रीब बच्चों को इस कला में माहिर कर रहे हैं, ऐसा क्यों ?

मैं एकलव्य तैयार करता हूं, अर्जुन नहीं। एकलव्य के पास कोई सुविधा नहीं थी उसका कोई कोच नहीं था, और वह अर्जुन से कहीं ज़्यादा प्रतिभाशाली था। जसपाल राणा अर्जुन तैयार करते हैं लेकिन मैं एकलव्य तैयार करता हूं, मुझे पैसे की लालच नहीं है, मेरा काम अपने मिशन को सफल बनाना है। सारे लोग मेरे से नाराज़ होते हैं कि मैं एकलव्य तैयार करता हूं, क्योंकि मैं तो बिना पैसे लिए शूटर बना रहा हूं। और दूसरे तो पैसा लेकर बनाने की बात करते हैं, मेरी वजह से उनकी दूकानें बंद हो रही हैं। जसपाल राणा तो सिर्फ़ पैसे के लिए अकादमी चलाते हैं, और मुझसे बहुत नाराज़ होते हैं। क्या कभी आपने या किसी ने देखा है कि कहीं गन्नों और ईंटों से शूटिंग सिखाई जाती हो। लेकिन मैं ऐसा करता हूं और मेरे बच्चे पूरी दुनिया में नाम रोशन कर रहे हैं, मेरी यही ताक़त है और यही मेरा मिशन है।

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